लिवर सिरोसिस क्या है ? कैसे होता है इसके लक्ष्यन क्या है ?

 लिवर सिरोसिस क्या है ? कैसे होता है इसके लक्ष्यन क्या है ?

यकृत सिरोसिस क्या है?

सिरोसिस एक धीरे धीरे बढ़ने बालि बीमारी है जिस मैं नीसान  ऊतक स्वास्त्य यकृत ऊतक की जगह  ले लेता है , जिससे आतन्त यकृत ठीक से काम नहीं कर पाता . नीसान  उत्तक यकृत के माध्यम से रक्त प्रबाहा को अबरुद्ध करता है और पोशाक तत्वा,हार्मोन,दबाव और प्राकृतिक रूप से उद्पादित बिसाकत  पदार्थों के प्रसंस्करण को धीमा कर देता है . यहाँ यकृत द्वारा बनाये गए प्रोटीन और अन्य पदार्थों के उद्दपादन को भी धीमा कर देता है . 



सिरोसिस कैसे बिकसित होता है ? 

लिवर एक बहत ही मजबूत अंग है और आम तर पर अपनी क्ष्यति ग्रस्त कोशिकाओं को फिर से बना सकता है . सिरोसिस तब बिकसित होता है जब अत्यधिक सराब पि जाते हैं या लम्बे समाय तक क्रोनिक संक्रमण मौजूद होता है। यहाँ घातक बीमारी लिवर को सिकोड़ कर सख्त कर देती है,जिसे पोशक तत्वा से भरपूर रक्त पोर्टल सिरा के माध्यम से लिवर मैं प्रभाहित होने से रोकता है . पोर्टल सिरा पाचन तंत्र से महत्वा पूर्ण पोशाक तत्वा को लिवर तक ले जाने बाली  रक्त को ले जाती है . जब रक्त लिवर मैं नहीं जा पाता है तो पोर्टल सिरा मैं दबाब बढ़ जाता है ,जिसे पोर्टल हाइपर टेंशन नामक एक गंभीर स्तिति पैदा हो जाती है . यहाँ अच्छा दबाब प्रणाली एसोफेगस बेरिकाज (बेरिकाग नसों की तरह)की और ले जाती है फट सकती है और खून बहा सकता है,जिसे अगर इलाज न किया जाये तो तत्काल मृत्यु हो सकती है . 

लिवर सिरोसिस के लक्ष्यन 

लिवर सिरोसिस के लक्ष्यन इसलिए होते है क्यों की लिवर रक्त को सुध करने , बिशाक्त  पदार्थों को तोड़ने,थक्के बनाने बाले प्रोटीन का उदपादन  करने बसा और बसा मैं घुलन सील विटामिन के अबसोसन मैं मदत करने मैं असमर्थ होता है . अक्सर जब तक बिकार आगे नहीं बढ़ जाता तब तक लिवर सिरोसिस के कोई लक्ष्यन नहीं दिख ते लिवर सिरोसिस के कुछ लक्ष्यणो मैं शामिल है . 

1 . थकान -लगातार और अपस्टीकृत   थकन एक सामांन्य प्रारंभिक लक्ष्यन है . 

2 पीलिया - यकृत द्वारा संसाधित बर्णन बिलीरुबिन के निर्माण के कारन त्वचा और आँखों का पीला पड़ना । 

3 . खुजली (प्रुरिटस) -त्वचा मैं खुजली एक आम शिकयत है,  जो अक्सर रक्त प्रबाह मैं पित्त लबन के संचय से सम्बंधित होती है। 

4 . पेट मैं असुबिधा - यह ऊपरी दाहिने पेट मैं दर्द या भारी पन की अनुभूती के रूप मैं प्रकट हो सकती है

5 . अनजाने मैं बजन कम होना - सिरोसिस के कारन भूक कम लग सकती है और बजन भी घट सकती है . 

6 . सूजन - द्रब  , प्रति धारण बिसेस रूप से पेरो और टखनो मैं यकृत की ख़राब कार्य प्रणाली और रक्त बाहीकाओं मैं दबाब बढ़ने के कारन हो सकता है . 

7 . आसानी से चोट लगना  और रक्त स्रा ब होना-क्ष्यति ग्रस्त यकृत पर्याप्त मात्रा मैं थक्का बनाने बाले प्रोटीन का उदपादन  करने मैं कठिनाई महसुसु कर सकता है . जिसके कारन आसानी से चोट लगना  और रक्त  स्राब  होना सुरु हो जाता है . 

8 . स्पाइडर  एनजीयोमास  -त्वचा पर,बिसेस रूप से सरीर के ऊपरी हिस्से पर ,छोटी मकड़ी जैसी रक्त बाहीकायें दिखाई दे सकती है . 

9 . गहरा नुत्र - मूत्र का रंग गहरा हो सकता है . 

10 . मल -मल का रंग पीला या मिटटी जैसा हो सकता है . 

11 . बढ़ी हुई तिल्ली - सिरोसिस के कारन बढ़ी हुई तिल्ली स्प्लेनोमेगा ली हो सकती है . 

12 . भ्रम  और मानसिक परिबर्तन - हेपेटिक एन्सेफ़ेलोपेथी के रूप मैं जाना जाने बाला ,मस्तिक मैं सिरोसिस से सम्बंधित परिबर्तन भ्रम , बिस्तृति और ब्यक्तित्वा मैं परिबर्तन का कारन बन सकता है . 

13 . गाइनोकोमेस्टीआ  -पुरुसो मैं सिरोसिस हार्मोन असंतुलन का कारन बन सकता है ,जिसे स्तन बृद्धि हो सकती है . 

14 . दबाव के प्रति सम्बेदनशीलता मैं बृद्धि - ख़राब लिवर के कारन दबाव के चयापचय मैं कठीनायीं हो सकती है,जिसके परिणाम स्वरुप दबाव के दुष्प्रभाव का खतरा बढ़ जाता है . 

 

लिवर सिरोसिस के कारन 

लिवर सिरोसिस  एक ऐसी स्तिति है जिस मैं लिवर के ऊतकों पर लगातार नीसान  बनते रहते है , जिसके अपरिबर्तनीय परिनाम हो सकते है . यह स्तिति एक महत्वा पूर्ण स्वास्त्य जोखिम पैदा करती है . जीसके बिकास मैं बिविन्न कारक और अंतर निहित लिवर रोग योगदान करते है,लिवर सिरोसिस के कुछ करने मैं शामिल है . 

1 . सराब का लगातार सेबन -लम्बे समाय तक और अत्यधिक सराब का सेबन  सिरोसिस के प्रमुख कारन मैं से एक है। शराब लिवर की कोशिकाओं नुकशान पहुंचती है , जिसे सूजन और फाइब्रोसिस होता है . 

2 . वायरल हेपेटा इटिस  - हेपेटाइटीस  बी या सी  वायरस के साथ दीर्घ कालिक संक्रमण से लिवर मैं सूजन और क्ष्यति हो सकती है ,तथा यदि इसका उपचार न किया जाये तो यह सिरोसिस मैं परिबर्तित हो सकता है

3 . नॉन - आलकोहलिक फेटी लिवर डीसीस  (एनएएफएलड़ी)  -ऍनएएफएलड़ी   एक ऐसी स्तिति है जिस मैं लिवर मैं बसा जमा हो जाती है , जो अक्सर मोटा पे इन्सुलिन प्रति रोध और मेटाबोलिक सिंड्रोम से जुडी होती है . क्भी कभी यह नॉन  अलकोहैलिक स्टिटोहेपाटाइटिस एनएएफएलडी   और सिरोसिस मैं बदल सकता  है . 

4 . स्वप्रतिरक्षी यकृत रोग - स्वप्रतिरक्षी या हेपाटाइटिस प्राथमिक पित्त बहिनिसोध स्केलेरोजिंग  पित्तबहिनी शोध (पिएससी)  जैसी स्तितियों मैं प्रति रक्षया  प्रणाली गलती से यकृत पर हमला कर देती है , जिसके परिणाम स्वरुप सूजन और घाव हो जाते है . 

5 . हेमोक्रोमैटोसिस -इस अनुबंसिक बिकार के कारन सरीर मैं लोहा का अत्यधिक अबसोसण   हो जाता है . जिसके परिणाम स्वरुप यकृत और अन्य अंगो मैं लोहा का जमाब हो जाता है , जिसे सिरोसिस हो जाता है . 

6 . बिसलन रोग - एक अन्य अनुबंसिक बिकार , बिसलन रोग , यकृत मैं ताम्बे के संचय का कारन बनता है , जिसे यकृत क्ष्यति और सिरोसिस होता है . 

7 . सिस्टिक फाइब्रोसिस - इस आनुबंसिक बिकार के कारन पित्त गाढ़ा  हो सकता है , जिसे पित्त नलिकाएं अबरुद्ध हो सकती है और परिणाम स्वरुप सिरोसिस हो सकता है . 

8 . पित्त सिरोसिस - प्राथमिक पित्त सिरोसिस और प्राथमिक स्केलेरोजिंग  कोलागाइटिस जैसी स्तितियाँ पित्त नलिकाओं को प्रभाबित करती है , जिसे यकृत को क्ष्यति पहुंचाती है  और घाब हो जाता है . 

9 . दीर्घा कलिक दबा उपयोग - कुछ दबाएं जैसे मेथोट्रेकसेट ,आइसोनियाज़िड , और कुछ एंटीरेट्रोबाइ रल  दबाएं , दीर्घा कलिक उपयोग से लिवर को नुकसान पहुँच सकती है . 

10 . अज्ञात कारन से सिरोसिस - कुछ मामलो मैं सिरोसिस का सटीक कारन अज्ञात रह सकता है , जिसे क्रिप्टो जेनिक सिरोसिस कहा जाता है . 

11 . सराब के कारन होने बाला फैटी लिवर रोग - शराब के दीर्घ कालिक दूर उपयोग के अलावा , मध्यम मात्रा मैं सराब का सेबन  भी लिवर को नुकसान पहुँचा  सकता है , बिसेस रूप से उन ब्यक्तिों मैं जो सराब से सम्बंधित लिवर समस्यों से ग्रस्त होते है . 

12 . क्रिप्टोजेनिक  सिरोसिस - कुछ मामलो मैं, सिरोसिस का सटीक कारन अस्पस्ट रहता है , और इसे क्रिप्टो जेनिक सिरोसिस के रूप मैं लेबल किया जता है . 

सिरोसिस के सामान्य कारन 

1 . दीर्घ कालिक वायरल हेपटाइटिस C  

2 . क्रोनिक हेपाटाइटिस B  संक्रमण 

3 . अत्यधिक सराब 

4 . मोटापा 

5 . स्वप्रतिरक्षी रोग के कारन होने बालि सूजन 

6 . पित्त नलिकाओं को नुकसान 

7 . हेमोक्रोमैटोसिस और बिसलन रोग जैसे बिकार 

8 . कुछ एंटी बायोटिस्क और एंटी डिस्प्रेसेंट जैसी प्रेसक्रिप्शन  और ओबर द काउंटर दबाए शामिल है . 

9 . जो सरीर की लोहे और ताम्बे को सँभालने की क्ष्यमताओं को प्रभाबित करते है . 

लिवर सिरोसिस के चरण 

लिवर सिरोइस एक प्रगति सील स्तिति है जिस मैं लिवर मैं निसान ऊतक बिकसित हो जाते है और समय के साथ यह काम करना बंद कर  देते है . सिरोसिस की गम्भीरता  का आकलन करने के लिए , चिकिस्या पेसेबर अक्सर चाइल्ड-प्लुग बरगी करण और अंतिम चरण के लिवर रोग (एमइएलड़ी )  स्कोर के लिए मॉडल पर भरोसा करते है , जो बिविन्न नैदानिक और प्रयोग साला कारको पर बिचार करते है . इन चरणों को समझना  रोगियों और स्वास्त्य सेबा  परदाताओं के लिए महत्वा पूर्ण है ,क्यों की यह उपचार निर्णयों और प्रबंधन राणनीतियों को सूचित करता है . 

प्रति पूरित सिरोसिस 

लिवर सिरोसिस के शुरुआती चरणों मैं , लिवर को नुकसान पहुँच ता है लेकिन फिर भी यह अपने महत्वा पूर्ण कार्यों  को उचित रूप से करने की क्षयमाता रखता है . इस चरण मैं मरीजों को लीवर सिरोसिस के लक्ष्यन दिखाई नहीं दे सकते है , या अगर बे ऐसा करते भी है , तो ये लक्ष्यन हलके होते है ,जैसे थकान या पेट मैं तकलीफ । क्ष्यति पूर्ति को  सिरोसिस चाइल्ड -प्लग क्लास A  मैं बर्गीकृत किया जा  सकता है,जो हलके लक्ष्यानो को दर्शाता है . 

बिघटित सिरोसिस 

जैसे - जैसे सिरोसिस बढ़ता है लिवर का काम बिगड़ता जाता है,जिसे अधिक गंभीर लक्ष्यन और जाटी लताए पीड़ा होती है,बिघटित सिरोसिस को चाइल्ड - प्लुग बर्ग B  और C  मैं बिभाजन किया गया है . 

चाइल्ड - प्लुग क्लास B -यहाँ चरण माध्यम यकृत बिकार को दर्शाता है , जिस मैं जटिलताओं का उच्च जोखिम होता है . लक्ष्यणो मैं जालीदार (पेट मैं तरल पदार्थो का जमाब) पीलिया और आसानी से रक्त स्राब या चोट लगने की प्रबृति शामिल हो सकती है . 

चाइल्ड -प्लग क्लास C  -यहाँ सिरोसिस का सबसे गंभीर चरण है ,जिस मैं लिवर की पर्याप्त शिथिलता और जटिलताओं का उच्च जोखिम होता है,इस चरण मैं मरीज अक्सर गंभीर जालीदार , एनस्नेफेलोपथी (लिवर के शिथिलता के कारन मानसिक भ्रम ) और रक्त स्राब  की बढ़ती प्रबृति से पीड़ित होते है

अंतिम चरण यकृत रोग 

इएसएलड़ी सिरोसिस  का सबसे उन्नत चरण है , जिसके साथ अक्सर जीबन के लिए खतरा पैदा करने बलि जटी  लताएं भी होती है , इस चरण मैं मरीज गंभीर लिवर सिरोसिस के लक्ष्यन से पीड़ित होते है , जैसे की हेपेटिक एनस्नेफेलोपथी,बड़े पैमाने पर जालीदार,हेपेटोरेनल सिंड्रोम , (गुर्दे की शिथिलता) और वैरिकाज रक्त स्राब (ग्रास नली या पेट मैं बढे हुए बाहीकाओं से रक्त स्राब ) इएसएलडी  ब्यक्ति के जीबन और अस्तित्वा की गुणबकता को काफी हद तक ख़राब कर देता है . और कोई रोगियों को लिवर प्रत्य रोपण की अबस्यकता होती है . 

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